मित्रो, बहुत दिन हुए आपसे कुछ बातें करने को जी चाहता था, आज हम देख रहे हैं, किहमारा समाज किस अंधे कुँए में धंसता जा रहा है, चारों ओर एक भयावहता विधमान है, समलिंगी मुखर हो रहे हैं। सेक्स ने कैसा वीभत्स रूप धारण कर रखा है, समलिंगी अपने समर्थन में भीड़ जुटाने में कामयाब हो रहे हैं, कल को भाई-बहन की शादी करने के लिए समर्थन जुटाया जाएगा और लोग आ भी जायेंगे , क्योंकि अब सामाजिक मूल्यों कि बात करने वाले नेपथ्य में चले गए हैं और मूर्खों ने समाज सत्ता और बुधिजीविता पर कब्जा कर रखा है, कल को ये समलिंगी जानवरों के साथ भी सेक्स करने को वैध ठहराने लगेंगे और तर्क तो वहां भी मिल जायेंगे, समाज हमेशा ऐसे कुबुधियों से दो चार होता रहा है, लेकिन अब इसका रूप अलग हो गया है, अब तो जागो ऋषियों के वन्सजो मिटने का समय आ गया है, शेष फ़िर कहेंगे -----
मनोज अनुरागी
Wednesday, August 5, 2009
Friday, June 26, 2009
हमारे आने तक---
मित्रों , समय की पुकार है कि अब हमें आ ही जाना चाहिए इस संसार में जीने योग्य बहुत कुछ है लेकिन वो हमें मिल ही जाय ये आवश्यक नहीं है। हम अपने चारों ओर देखते हैं, एक अजीब सी खामोशी और कशिश दिखाई देती है, हर आदमी कुछ खोज रहा है लेकिन आश्चर्य की उसे पता ही नहीं की उसे क्या चाहिए जो वह पताहै उससे वो संतुष्ट नहीं होता क्योंकि उसकी तलाश उसे पता ही नहीं है, फ़िर भी वो चला जा रहा है और खोज रहा है, कहीं कोई ठहराव नहीं है। बिना जाने कुछ भी करते जाना भारतीय दर्शन में सिखाया जाता है, क्योंकि हमारी परम्परा कह रही है कि अपनी सब इन्द्रियां बंद करके गुरु कि बात पर विश्वास करो वाही तुम्हें सही मार्ग दिखायेंगे लेकिन जब गुरु को ही अपनी मंजिल का पता न हो तो किसका लछ्य कैसा लछ्य, यही हो रहा है, इसलिए ही हमारा देश सामाजिक रूप से भटकाव का शिकार है, इसे बचा लो। अपनी पूरी छमता के साथ चलो उठो ये मिलने का समय है।
आपका मित्र , मनोज अनुरागी
कांटेक्ट - ०९७६०२००६४७
आपका मित्र , मनोज अनुरागी
कांटेक्ट - ०९७६०२००६४७
Sunday, May 10, 2009
Saturday, May 9, 2009
अभी बहुत दिन नहीं हुए.
अभी बहुत दिन नहीं हुए.जब अपने देश के सुदूरवर्ती धूसर गाँव से निकलकर आज की तथाकथित सभ्य यानि शहरी दुनिया में कदम रखा था। ये वो दुनिया है जहाँ संवेदनाएं मर चुकी हैं। एक बहरी आवरण है जिसने इस फरेबी संसार को अपने आगोश में ले रखा है। हमने बहुत करीब से देखा और अनुभव किया । राजनीतिज्ञों और संतों की दुनिया में भी रहा। बहुत अच्छे लोग हैं लेकिन अपने में ही कैद आत्म महत्व से आकंठ डूबे हुए। सब अच्छे लगे और इनका ये मायाजाल भी अच्छा लगा। आज अपने पहाडों के पास आ गया हूँ जो हमारी आत्मा में बसे हुए हैं। ये प्रकृति के सत्य और प्रेमिल रूप हमारे ह्रदय को अपने आगोश में भर लेते हैं और हम इनको अपना सब कुछ अर्पित कर देते हैं। यहाँ कोई मानवीय फरेब नहीं है। यहाँ कोई आत्म महत्व नहीं है। ये निर्विकार निर्विकल्प प्रेम समाधी में लीनं आत्मस्थ हैं। इनकी साधना हमें जीवन की और उसके पार की प्रेरणा देती है। अब हम अपने इन्हीं पहाडों में आत्मस्थ हो जाना चाहते हैं। हम आपको इनकी महँ साधना से रूबरू कराने का प्रयास करेंगे। आइये हमारे साथ संसार के इस अलौकिक आनंद में डूबकर परम तत्त्व की और चलें।
फ़िर मिलेंगे
अनुरागी
फ़िर मिलेंगे
अनुरागी
Thursday, May 7, 2009
परिचय
मित्रो ब्लॉग की दुनिया में ये मेरा पहला कदम है। हम नहीं जानते की संसार में इस ब्लॉग की माया क्या है। संसार जितना जटिल दिखाई देता है उतना जटिल ये है भी और नहीं भी। हमारे मित्रों ने हमें बताया की आज ब्लॉग की दुनिया बहुत ही रोचक और मननीय हो गई है। चिंतन की अनेकों धाराएँ इस दुनिया में प्रवाहित हैं। हम एक ऐसे धूसर गाँव से निकले थे जहाँ आज भी शहरी जीवन की चकाचौंध नही पहुँच पाई है। संवेदनाओ से धड़कते ह्रदय हैं तो सामंती कटुताएं भी अपने चरम के साथ जीवित हैं। गाँव की मधुरता है। तो आधुनिकता की दूरागत धमक भी सुनाई दे रही है। युवाओं का १०० प्रतिशत पलायन शहरों की और हो रहा है। एइसे में हम फ़िर मिलेंगे। .......
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