Saturday, May 9, 2009

अभी बहुत दिन नहीं हुए.

अभी बहुत दिन नहीं हुए.जब अपने देश के सुदूरवर्ती धूसर गाँव से निकलकर आज की तथाकथित सभ्य यानि शहरी दुनिया में कदम रखा था। ये वो दुनिया है जहाँ संवेदनाएं मर चुकी हैं। एक बहरी आवरण है जिसने इस फरेबी संसार को अपने आगोश में ले रखा है। हमने बहुत करीब से देखा और अनुभव किया । राजनीतिज्ञों और संतों की दुनिया में भी रहा। बहुत अच्छे लोग हैं लेकिन अपने में ही कैद आत्म महत्व से आकंठ डूबे हुए। सब अच्छे लगे और इनका ये मायाजाल भी अच्छा लगा। आज अपने पहाडों के पास आ गया हूँ जो हमारी आत्मा में बसे हुए हैं। ये प्रकृति के सत्य और प्रेमिल रूप हमारे ह्रदय को अपने आगोश में भर लेते हैं और हम इनको अपना सब कुछ अर्पित कर देते हैं। यहाँ कोई मानवीय फरेब नहीं है। यहाँ कोई आत्म महत्व नहीं है। ये निर्विकार निर्विकल्प प्रेम समाधी में लीनं आत्मस्थ हैं। इनकी साधना हमें जीवन की और उसके पार की प्रेरणा देती है। अब हम अपने इन्हीं पहाडों में आत्मस्थ हो जाना चाहते हैं। हम आपको इनकी महँ साधना से रूबरू कराने का प्रयास करेंगे। आइये हमारे साथ संसार के इस अलौकिक आनंद में डूबकर परम तत्त्व की और चलें।
फ़िर मिलेंगे
अनुरागी

1 comment:

  1. shayad aap shahar ki baat kr rahe h jahan koi kisi ka nhin..

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